पंछियों की तरह,
उड़ चलें आसमां में,
दूर तक है जहाँ पे,
न कोई बंदिशें.
एक नीले गगन पे,
बादलों का समंदर,
न कोई सरहदें हैं,
अपना सा सब लगे.
देखता हू ज़मीन पर,
रास्ते हैं कई,
हर डगर पे चलने की,
इजाजत नहीं.
है यहाँ पे दीवारें,
वाहन कांटे बिछे हैं,
रुक गए ये कदम हैं,
अब मैं जाऊं कहाँ.
काश! होता अगर,
मैं अहवा की तरह,
बांटता सबको खुशियाँ,
मैं यहाँ से वहाँ.
पंछियों की तरह,
उड़ चलें आसमां में,
दूर तक है जहाँ पे,
न कोई बंदिशें.
बनाने वाले ने तो,
एक जहाँ बनाया था,
लकीरें खीचकर हमने,
उसका दिल तोड़ दिया.
है दुआ मेरी रब से,
बचाना तू आसमा वालों को,
उस नीले समंदर पे,
ना कभी हो सरहदें.
पंछियों की तरह,
उड़ चलें आसमां में,
प्यार हो बस जहाँ पर,
ना कभी हो नफरतें,
ना कोई हो दीवारें,
ना कोई सरहदें हो,
एक नीला गगन हो,
अपने ही सब जहाँ हो.
ना हो कुछ भी हमारा,
ना हो कुछ भी तुम्हारा,
एक ऐसा जहाँ हो,
हो जहाँ सिर्फ अपना.
हो अमन चैन खुशियाँ,
और खुशियाँ ही खुशियाँ,
खुशियाँ ही खुशियाँ,
और खुशियाँ ही खुशियाँ.
कुंदन विद्यार्थी.
Monday, 19 August 2013
उड़ चलें
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