Thursday 21 November 2013

खुद की तलाश में

मत पूछ के नीला अम्बर कैसा है।
मैंने तो बस बादलों का पता जाना है ।।
कुछ काले, कुछ सफ़ेद।
जो घुमड़ते हैं मेरी जिंदगी के आसमान पर ।।
मैने धुप भी देखी है तो इन बादलों की नज़र से।
और चाँद भी धुंधला सा ही दिखा है मुझे ।।
मत पूछ के आसमां पे बेख़ौफ़ उड़ता हुआ परिंदा कैसा होता है ।
के मैंने देखा ही नहीं उन्हें और न ही मेरे पंख हैं मेरे जो मुझे ले चले इन बादलों के उस पार ।।
मैंने जब भी कोशिश की है उड़ने की इस पतंग के सहारे ।
टपकती बूंदों ने मुझे लहुलुहान कर दिया है ।।
मात पूछ के हरियाली कैसी होती है।
नज़ारा कैसा होता है ।।
सूखे और वीराने में ही रहा हु आजतक ।
प्यासा लड़खड़ाता हुआ खुद की तलाश में ।
    कुंदन विद्यार्थी

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