Wednesday 31 July 2013

कह दू तुम्हें ??

सोचता हूँ,
के केह दूँ तुमसे अपने दिल का हाल,
दे दूँ तुम्हें,
तेरे हर सवाल का जवाब;
जाहिर कर दूँ मैं,
तुझपे अपनी पहचान,
के मैं तेरी ही परछाई हूँ,
के मैं तेरा ही दीवाना हूँ |

केह दूँ तुमसे,
के मैं वही हूँ,
जिससे कई बार,
तुम मिल चुकी हो राहों में;
बता दूँ तुम्हें,
के मैं वही हूँ,
जिससे हर बार ,
जाने क्यूँ तुमकतराती रही हो |

कई दफा तुमने तो,
राहें भी बदली हैं मुझे देखकर,
और हर बार मैं तुम्हें,
बस जाते हुए देखता रहा हूँ,
तुम्हारे बस एक झलक को,
मैं हर बार,
पलकें बिछाता रहा हूँ,
तेरे राहों में |

मैं वही हु जिससे,
अनजाने में ही सही तेरी नज़रें टकराती रही हैं,
और अनजाने में ही सही,
जिसे तुम अबतक सताती रही हो;
मैं वही हु,
जिसके सपनो में तुम आती रही हो,
और नींदें जिसकी,
अक्सर ही तुम उडाती रही हो |

मुस्कुराई भी हो,
तुम मुझे देखकर,
और कंभी कभी,
खफा भी हुई हो मुझसे;
खिलखिलाई भी हो,
खुल के मेरे सामने,
और परदे भी किये हैं,
तुमने कई बार मुझसे |

मैं वही हूँ,
जिसे देखकर छुप जाती हो तुम कभी,
और कभी,
छुप छुप के देख जाती हो जिसे ;
मैं वही हूँ,
जो तुम्हें देखकर रुक सा जाता है कभी,
और कभी,
रुक रुक के देख जाता है तुम्हें |

मैं जानता हूँ,
के तुम मुझे जानती हो,
जाने क्यूँ मुझे लगता है,
मेरे लिखे हर शब्द को पहचानती हो;
पर शायद,
तुम ये नहीं जानती,
के मेरे हर शब्द, हरलफ्ज़,
बस तेरी ही अमानत हैं |

तुम ये नही जानती शायद,
के तेरा नाम अपने हर सांस पे लिख राखी है हमने,
के तेरा अक्स,
दिल की दीवारों पे सजा रखा हैमैंने;
के ये धड़कन,
धड़कती भी हैं तो तेरे नाम से,
और शायद,
रुकते हुए भी तेरा ही नाम लेगी |

तुम ये भी नहीं जानती शायद,
के तू मेरे हर सोच में शामिल है,
के हर भीड़ में,
मैं तुझे ही ढूंढता हूँ;
के ये आंसू भी,
बहते हैं तो तेरे लिए,
और तुझे ही देखकर,
मुस्कुराता भी हूँ मैं |

सोचता हूँ के,
ये भी कह दूँ तुमसे अब,
के मैं वही हु जो तुमसे बेपनाह मोहब्बत करता ह;
कह दूँ के हाँ,
मैं आशिक हु तेरा,
और ये भी,
के मैं तेरी इबादत कारता हूँ |

काश! के तुम,
ये बिन कहे ही समझ जाती,
के बिन सुने,
सुन लेती सबकुछ;
लेकिन इस पागल को,
कहना ही होगा अब,
पर अब भी डरता हूँ मैं,
के तुम मुझे सुनोगी ...? समझ पाओगी मेरे दीवानेपन को ...???
    कुंदन विद्यार्थी.

भावनाओं का टकराव

एक तड़प सी है,
एक बेचैनी सी है,
जल रहा है कुछ सीनेमें,
टूटकर बिखरता जा रहा है कुछ,
ना जाने क्यूँ  ऐसा लगता है,
के सब कुछ ख़तम कर दूँ मैं,
जला दू इस दुनिया को ,
या पिघल जाऊं मोम की तरह,
कर लू सब मुठ्ठी में,
या फिसल जाऊं रेत की तरह,
खुद के टुकड़े कर दू,
या तोड़ दू ये सारे बंधन,
छीन लू सब इस दुनिया से,
या छोड़ जाऊं सबकुछ,
हस लू पागलों की तरह,
या फिर रो लू जी भर केआज,
सब धुंधला सा लगने लगा है अब,
बस कुछ पल में डूब जाऊँगा शायद ।।।