एक तड़प सी है,
एक बेचैनी सी है,
जल रहा है कुछ सीनेमें,
टूटकर बिखरता जा रहा है कुछ,
ना जाने क्यूँ ऐसा लगता है,
के सब कुछ ख़तम कर दूँ मैं,
जला दू इस दुनिया को ,
या पिघल जाऊं मोम की तरह,
कर लू सब मुठ्ठी में,
या फिसल जाऊं रेत की तरह,
खुद के टुकड़े कर दू,
या तोड़ दू ये सारे बंधन,
छीन लू सब इस दुनिया से,
या छोड़ जाऊं सबकुछ,
हस लू पागलों की तरह,
या फिर रो लू जी भर केआज,
सब धुंधला सा लगने लगा है अब,
बस कुछ पल में डूब जाऊँगा शायद ।।।
No comments:
Post a Comment