Sunday 24 November 2013

सिर्फ तुम्हारे इंतज़ार में

सिर्फ तुम्हारे इंतज़ार में
तुम ।
सिर्फ तुम बसी हो ।।
मेरी धड़कन में मेरे तनमन में ।
मेरे नज़र के हर एक दर्पण में ।।
जब भी देखता हूँ इन्हें ।
अपने होने का एहसास होता है ।।
तेरी खुशबु का ।
तेरी मौजूदगी का आभास होता है ।।
मेरी यादों के हर एक कोने में ।
मेरे जागने में मेरे सोने में ।।
बस तुम्हें गुनगुनाता हु, तुम्हें ही निहारता हु ।
सिर्फ तुम्हें ही हर वक्त पुकारता हु ।।
तनहा तो हु ।
पर तेरी बातों का साथ अब भी बाकी है ।।
अक्सर ही खामोश रहकर ।
तुम्हें, तुम्हारी हर एक आहाट को सुनने की कोशिश
करता हु ।।
तुम्हारी ।
सिर्फ तुम्हारी ही पूजा करता हु ।।
उस खुदा की तरह ।
जिसे देखा तो नहीं पर तुममे पाया है ।।
जिसे जाना तो नहीं ,
पर तुझे जानकर यूँ लगता है ,
के वो तेरे जैसा ही होगा,
प्रेम की प्रतिमूर्ति ।।
ग़म नहीं है मुझे,
तुम्हारे नहीं होने का ।
पर ख़ुशी है ,
के तुम लौट आओगी मेरे पास ।।
सिर्फ तुम्हारे इंतजार में,
बैठा हु आसमा की तरफ रुख किये ।
उस खुदा से अपने खुदा को,
दुआओं में मांगता हुआ ।।
कुंदन विद्यार्थी

Thursday 21 November 2013

खुद की तलाश में

मत पूछ के नीला अम्बर कैसा है।
मैंने तो बस बादलों का पता जाना है ।।
कुछ काले, कुछ सफ़ेद।
जो घुमड़ते हैं मेरी जिंदगी के आसमान पर ।।
मैने धुप भी देखी है तो इन बादलों की नज़र से।
और चाँद भी धुंधला सा ही दिखा है मुझे ।।
मत पूछ के आसमां पे बेख़ौफ़ उड़ता हुआ परिंदा कैसा होता है ।
के मैंने देखा ही नहीं उन्हें और न ही मेरे पंख हैं मेरे जो मुझे ले चले इन बादलों के उस पार ।।
मैंने जब भी कोशिश की है उड़ने की इस पतंग के सहारे ।
टपकती बूंदों ने मुझे लहुलुहान कर दिया है ।।
मात पूछ के हरियाली कैसी होती है।
नज़ारा कैसा होता है ।।
सूखे और वीराने में ही रहा हु आजतक ।
प्यासा लड़खड़ाता हुआ खुद की तलाश में ।
    कुंदन विद्यार्थी