Wednesday 14 March 2018

दस्तक

वर्षों से बंद दरवाजे पर,
हल्की सी दस्तक हुई,
मन के कोने में दुबकी धड़कन में,
अचानक कुछ हरकत हुई ।
घबरा सा गया वो,
इस आहट से,
और आहत होने के डर से,
फिर दुबक गया ।
लेकिन,
दस्तक फिर हुई,
किसी ने प्यार से थपकी दी,
जंग लगे दरवाजे पर ।
और जैसे चरमरा सा गया,
नाजुक से मन का कठोर सा दरवाजा,
ऐसे जैसे दे मारा हो किसी ने,
गुलाब का फूल इसपर ।
उठकर, चलकर कोने से,
धड़कन ने झांका झरोखे से,
और फिर उसको उम्मीद दिखी,
और फिर उसको एहसास हुआ,
के उसमें हलचल भी होती है,
के उसमें सांसो का संचार भी होता है,
के उसमें रक्त के साथ साथ,
भावनाओं का संचार भी होता है ।
और उस नन्ही सी जान ने,
अपने नाजुक से हाथों से खोल दिया लोहे का वो दरवाजा मुस्कुराते हुए,
जिसके पीछे उस अंधेरे में,
जाने कब से खुद को छुपाये बैठी थी ।
पर उसकी मुस्कुराहट पे,
जैसे फिर किसी की नज़र लग गयी ।
सामने फिर खाली पन था,
अभी अभी जो देखा था इसने, सब शायद भ्रम था ।।

Tuesday 15 December 2015

चलोगी न?

कुछ लफ्ज़,
जो तुमने कभी कहे नहीं शायद,
पर मैंने सुना है तेरी आवाज को |
मैंने सुना है वो गीत,
जो तुम अक्सर गुनगुनाती हो,
कभी छुप के, कहीं मन में |
वो शब्द पढता हूँ अक्सर ही,
किसी कोरे कागज पर,
जो तुम निगाहों से ,
चाहे अनचाहे ही लिख जाती हो ,
मुझसे नज़र बचाकर,
खुद से नजर चुराकर |
ढूंढता हूँ तुम्हें,
तुममे, और तेरी याद में,
तेरे जाने के बाद,
के शायद मुझे तुम दिख जाओ,
के शायद मैं तुम्हें दिख जाऊं |
बस,
इसी उम्मीद में रहता हूँ,
के तुम छुपकर नहीं,
डरकर नहीं,
दिल से कुछ कहोगी,
कुछ लिखोगी जिसे मैं बार बार पढूंगा, 
जिसे सुनकर,
भूल जाऊंगा सब कुछ |
के शायद,
वो दिन आएगा,
जब तुम पल पल मुझे याद करोगी,
दूर रहकर भी हर पल मेरे साथ रहोगी,
मेरा हमसफ़र बनकर,
एक साए की तरह साथ चलोगी |
चलोगी न??????????

कुंदन विद्यार्थी 
(Image courtesy: Google)

Sunday 24 November 2013

सिर्फ तुम्हारे इंतज़ार में

सिर्फ तुम्हारे इंतज़ार में
तुम ।
सिर्फ तुम बसी हो ।।
मेरी धड़कन में मेरे तनमन में ।
मेरे नज़र के हर एक दर्पण में ।।
जब भी देखता हूँ इन्हें ।
अपने होने का एहसास होता है ।।
तेरी खुशबु का ।
तेरी मौजूदगी का आभास होता है ।।
मेरी यादों के हर एक कोने में ।
मेरे जागने में मेरे सोने में ।।
बस तुम्हें गुनगुनाता हु, तुम्हें ही निहारता हु ।
सिर्फ तुम्हें ही हर वक्त पुकारता हु ।।
तनहा तो हु ।
पर तेरी बातों का साथ अब भी बाकी है ।।
अक्सर ही खामोश रहकर ।
तुम्हें, तुम्हारी हर एक आहाट को सुनने की कोशिश
करता हु ।।
तुम्हारी ।
सिर्फ तुम्हारी ही पूजा करता हु ।।
उस खुदा की तरह ।
जिसे देखा तो नहीं पर तुममे पाया है ।।
जिसे जाना तो नहीं ,
पर तुझे जानकर यूँ लगता है ,
के वो तेरे जैसा ही होगा,
प्रेम की प्रतिमूर्ति ।।
ग़म नहीं है मुझे,
तुम्हारे नहीं होने का ।
पर ख़ुशी है ,
के तुम लौट आओगी मेरे पास ।।
सिर्फ तुम्हारे इंतजार में,
बैठा हु आसमा की तरफ रुख किये ।
उस खुदा से अपने खुदा को,
दुआओं में मांगता हुआ ।।
कुंदन विद्यार्थी

Thursday 21 November 2013

खुद की तलाश में

मत पूछ के नीला अम्बर कैसा है।
मैंने तो बस बादलों का पता जाना है ।।
कुछ काले, कुछ सफ़ेद।
जो घुमड़ते हैं मेरी जिंदगी के आसमान पर ।।
मैने धुप भी देखी है तो इन बादलों की नज़र से।
और चाँद भी धुंधला सा ही दिखा है मुझे ।।
मत पूछ के आसमां पे बेख़ौफ़ उड़ता हुआ परिंदा कैसा होता है ।
के मैंने देखा ही नहीं उन्हें और न ही मेरे पंख हैं मेरे जो मुझे ले चले इन बादलों के उस पार ।।
मैंने जब भी कोशिश की है उड़ने की इस पतंग के सहारे ।
टपकती बूंदों ने मुझे लहुलुहान कर दिया है ।।
मात पूछ के हरियाली कैसी होती है।
नज़ारा कैसा होता है ।।
सूखे और वीराने में ही रहा हु आजतक ।
प्यासा लड़खड़ाता हुआ खुद की तलाश में ।
    कुंदन विद्यार्थी

Monday 19 August 2013

उड़ चलें

पंछियों की तरह,
उड़ चलें आसमां में,
दूर तक है जहाँ पे,
न कोई बंदिशें.
एक नीले गगन पे,
बादलों का समंदर,
न कोई सरहदें हैं,
अपना सा सब लगे.
देखता हू ज़मीन पर,
रास्ते हैं कई,
हर डगर पे चलने की,
इजाजत नहीं.
है यहाँ पे दीवारें,
वाहन कांटे बिछे हैं,
रुक गए ये कदम हैं,
अब मैं जाऊं कहाँ.
काश! होता अगर,
मैं अहवा की तरह,
बांटता सबको खुशियाँ,
मैं यहाँ से वहाँ.
पंछियों की तरह,
उड़ चलें आसमां में,
दूर तक है जहाँ पे,
न कोई बंदिशें.
बनाने वाले ने तो,
एक जहाँ बनाया था,
लकीरें खीचकर हमने,
उसका दिल तोड़ दिया.
है दुआ मेरी रब से,
बचाना तू आसमा वालों को,
उस नीले समंदर पे,
ना कभी हो सरहदें.
पंछियों की तरह,
उड़ चलें आसमां में,
प्यार हो बस जहाँ पर,
ना कभी हो नफरतें,
ना कोई हो दीवारें,
ना कोई सरहदें हो,
एक नीला गगन हो,
अपने ही सब जहाँ हो.
ना हो कुछ भी हमारा,
ना हो कुछ भी तुम्हारा,
एक ऐसा जहाँ हो,
हो जहाँ सिर्फ अपना.
हो अमन चैन खुशियाँ,
और खुशियाँ ही खुशियाँ,
खुशियाँ ही खुशियाँ,
और खुशियाँ ही खुशियाँ.
कुंदन विद्यार्थी.

कोशिशे

बिखरी हुई यादों को सहेजने
की कोशिश करता हूँ,
उन लम्हों को आँखों में समेटने
की कोशिश करता हूँ,
डर है, कहीं दूर ना हो जाऊं मैं
उन यादों से कभी,
शायद इसीलिए कभी कभी उन
जख्मो को कुरेदने की कोशिश
करता हूँ!!
उन यादों में मेरे बीते हुए कल
छुपे हैं,
कुछ खुशियों के, कुछ ग़मों के
गंगाजल छुपे हैं,
कितना सुकून था रोने में
भी अपनों के साथ,
बस इसलिए उन
अश्कों को पलकों में समेटने
की कोशिश करता हू!!
वो बचपन की तुतलाती अठखेलिय,
अनसुलझी पहेलियाँ,
गिरकर संभालना और छिली हुई
वो हथेलियाँ,
फिकर नहीं जमाने की कोई, बस
खुशियाँ बिखेरना,
कल्पना कर उन बातों की फिर से
मुस्कुराने कीकोशिश करता हूँ!!
बस्ते का बोझ बेफिक्र उठाकर
चलते थे,
अम्मां के आँचल में दिल खोलकर
सिसकते थे,
धुल में, मिटटी में, हर शाम
हुरदंग करते थे,
तन्हाई में फिर से वो तस्वीरे
उकेरने की कोशिश करता हू!!
पिछली बेंच पर बैठ
लड़कियां तारना लेक्चरों में,
फिल्मे देखने के लिए अक्सर
ही क्लास बंक करना,
छुप छुप कर कभी सिगरेट
तो कभी शराब की शोहबत,
हर चौराहे पर आज भी खुद
को दोस्तों के साथ तलाशने
की कोशिश करता हू!!
इश्क, प्यार, मुहब्बत
की बातों में खुशियाँ ढूंढते
थे,
दिल टूटने का गम भी चुप चाप
पिया करते थे,
झगरकर भी पास रहते थे
दोस्तों के,
आज भी वो बाते याद कर उन्हें
महसूस करने की कोशिश करता हू!!
जानता हू के कभी लौटकर
नहीं आयेंगे वो पल कभी,
इसीलिए हर एक लम्हों को दिल
में छुपाने की कोशिश करता हू,
हर एक जख्म से कुछ
पुरानी यादें जुडीहैं,
बस इसलिए कभी कभी उन
जख्मो को कुरेदने की कोशिश
करता हू!!!!
कुंदन विद्यार्थी.

तेरी तलाश में


तेरी तलाश में है दिल,
तेरी ही आश लिए है,
मगर न जाने छुप गयी,
है तू कहाँ.....
बहुत ही बेचैन है,
बस एक नज़र को तेरी,
मगर न जाने छुप गयी,
है तू कहाँ......
मैं तुमको प्यार करूँ कितना,
तुझे खबर ही नहीं,
मगर यकीं है मुझे इतना,
के तू मिलेगी कहीं,
सदा ही साथ रहू तेरे,
यही तमन्ना है,
मगर न जाने छुप गयी,
है तू कहाँ.....
तुझे ही सोचता हू मैं हरपाल,
तेरा ही इन्तेज़ार करूँ,
बिना तेरे अब मैं एक पल भी,
न जियूं न मरुँ,
तू ही है जिंदगी मेरी,
जियूं मैं तेरे लिए,
मगर न जाने छुप गयी,
है तू कहाँ.....
कुंदन विद्यार्थी.