वर्षों से बंद दरवाजे पर,
हल्की सी दस्तक हुई,
मन के कोने में दुबकी धड़कन में,
अचानक कुछ हरकत हुई ।
घबरा सा गया वो,
इस आहट से,
और आहत होने के डर से,
फिर दुबक गया ।
लेकिन,
दस्तक फिर हुई,
किसी ने प्यार से थपकी दी,
जंग लगे दरवाजे पर ।
और जैसे चरमरा सा गया,
नाजुक से मन का कठोर सा दरवाजा,
ऐसे जैसे दे मारा हो किसी ने,
गुलाब का फूल इसपर ।
उठकर, चलकर कोने से,
धड़कन ने झांका झरोखे से,
और फिर उसको उम्मीद दिखी,
और फिर उसको एहसास हुआ,
के उसमें हलचल भी होती है,
के उसमें सांसो का संचार भी होता है,
के उसमें रक्त के साथ साथ,
भावनाओं का संचार भी होता है ।
और उस नन्ही सी जान ने,
अपने नाजुक से हाथों से खोल दिया लोहे का वो दरवाजा मुस्कुराते हुए,
जिसके पीछे उस अंधेरे में,
जाने कब से खुद को छुपाये बैठी थी ।
पर उसकी मुस्कुराहट पे,
जैसे फिर किसी की नज़र लग गयी ।
सामने फिर खाली पन था,
अभी अभी जो देखा था इसने, सब शायद भ्रम था ।।
Wednesday, 14 March 2018
दस्तक
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